Book Title: Sanyukta Prant Ke Prachin Jain Smarak
Author(s): Shitalprasad Bramhachari
Publisher: Jain Hostel Prayag

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Page 139
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सं० प्रा० प्राचीन जैन स्मारक। है। इसमें चालुक्य राजा पुलकेशी द्वितीय के महान कार्यों का वर्णन किया है । इसमें लिखा है कि इसने अपने प्रभाव से लाटों मालवों और गुर्जरों को अपने वश कर लिया था ( देखो इंडियन एंटिक्करी जिल्द = सफा २४४)-वर्तमान शान से मालूम हुआ कि ये गुर्जर राजपूताना वासी थे। नोट-हमने ऐहीलो नाम के प्राचीन नगर की यात्रा ता० ३ जून सन १९२३ को की थी। यहां पहाड़ी पर एक बड़ा जैन मंदिर है इसी को मेघुती मंदिर कहते हैं । यहां एक बड़ा शिला लेख भीतपर कनड़ी अक्षरों में है । यह मंदिर जैन राजा का बनवाया मालूम होता है। (२) पिलखना-कायमगंज से सराय अधत जाते हुए सड़क पर एक ग्राम है । कहावत बताते हैं कि इसका सम्बन्ध सनकिसा के प्राचीन खंडहरों से है जो यहां से बहुत दूर नहीं है । यहां एक बड़ा पशुओं का मेला अब भी होता है जिस. के लिये यह स्थान प्रसिद्ध है। यह ग्राम एक ऊंचे टीले पर है। यहां बहुत से पत्थर खोदे गए हैं तथा जैन मंदिर के प्राचीन अंश यहां मिले हैं। (३) सनकिसा-वसंतपुर-यह प्राचीन नगर था । यहां बौद्धों की मीनारें हैं (देखो कनिंघम रिपोर्ट A. S., I. P271279 & XI. P22-31) __ खंडहरों के टीले पर एक विसारीदेवी का मंदिर है। एक टीलेको नीवी का कोट कहते हैं-३००० फुट लम्बा व For Private And Personal Use Only

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