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गोंडा।
यह स्थान अकौना से पूर्व ५ मील व बलरामपुर से पश्चिम १२ मील है।
सन् १८८६ में छः जैन तीर्थकरों की मूर्तियां दो शिला लेख सहित लखनऊ अजायवघर को भेजी गई । सन् १८७५-७६ में डाक्टर हे साहब ने खुदाई करके महेठ के पश्चिम तरफ़ श्री संभवनाथ के जैन मंदिर से कुछ मूर्तियां एकत्र की । इन्हीं में एक मूर्ति सुमतिनाथ जी की थो । सन् १८८५ में यहां एक बहुत ही मूल्यवान वस्तु अर्थात् एक शिलालेख संवत ११७६ का मिला जिसमें लिखा है कि कन्नौज के राजा मदनपाल के मंत्री विद्याधर ने एक मठ बनवाया। यह पाषाण लखनऊ अजायबघर में रक्खा है। यह महेठ ही श्रावस्ती नगरी थी यह बात पूर्णतः स्वीकार की गई है। तमरिंद द्वार से कुछ ही दूर सन् १८७६ व १८८५ में खुदाई हुई थी फिर १६०८ में भी खुदाई हुई तब नीचे लिखी वस्तुएं प्राप्त हुई जो सर्व जैनियों की हैं :(१) पद्मासन श्रीऋषभदेव को अखंडित मूर्ति २ फुट ६॥ इंच
ऊंची। इसमें दूसरे २३ तीर्थकर पद्मासन विराजित हैं। (२) पद्मासन तीर्थकर २ फुट ६. इंच । बांई भुजा खंडित ।
इसमें भी अन्य २३ पद्मासन हैं। (३) पभासन तीर्थकर १ फुट ३ इंच ।
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