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सं० प्रा० प्राचीन जैन स्मारक |
कि यह श्री पार्श्वनाथ जी का मन्दिर था जिसकी तारीख कुशानों के समय की है। उसने कई मग्न जैन मूर्तियां भी प्राप्त कीं जिनमें से कुछ में सन् ६६ से १५२ तक तारीख थी। (He found a number of fragmentary naked Jain statues, some inscribed with dates ranging from '96 to 152 A. D. ) तथा इसके उत्तर एक छोटे मन्दिर के खंडहरों को भी प्राप्त किया था तथा इसके पूर्व एक ईटों का स्तूप भी पाया। यहां बहुत से टीले ऐसे हैं जिनकी अभी खुदाई होनी है।
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कनिंघम साहब अरकिलाजिकल सरवे जिल्द पहली दूसरी में सफा २५५ में लिखते हैं कि रामनगर ( अहिछत्र ) बहुत प्राचीन नगर है । यहाँ जो स्तंभ है उस पर श्राचार्य इन्द्रनदीं शिष्य महादरी पाश्र्श्वमतिराय कोट्टारी आदि लिखा है । डा० फुहरर की रिपोर्ट से विदित हुआ कि उस पर शब्द हैं “महाचार्य इन्द्रनन्दि शिष्य पार्श्वपतिस्स कोट्टारी" । कटारी खेड़ा में जो बहुत सी नग्न मूर्तियां निकली हैं वे सब दिगम्बर नाय को हैं । ( There were several nude, figures which the general afterwards assigned to Jain artists of Digambar sect.) एक छोटा पाषाण मिला था जिस पर नवग्रह बने हुए थे तथा एक बड़े खंभे का टुकड़ा मिला था जिसके चारों तरफ सिंह बने थे ।
नोट - श्रहिछत्र की खोज जैनियों को अच्छी तरह करनी
चाहिये ।
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