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गोरखपुर।
वास्तव में यह एक बड़े मन्दिर का मान स्तम्भ है जैसा कि प्राचीन मन्दिरों में पाया जाता है। ऐसे मन्दिर मूडविद्री की तरफ हैं। ___इस लेख से यह अच्छी तरह प्रगट है कि ईस्वी सन् को चौथी व पांचवीं शताब्दी में मूर्ति पूजा अच्छी तरह से प्रचलित थी तथा दिगम्बर जैन धर्म के अनुयायी अनेक धनी गृहस्थ विशाल जिन भवनों की स्थापना कराते थे। हमारे किसी जैनी भाई को उचित है कि वे इस स्थान की यात्रा करें और निकटवर्ती जिन मंदिर का जीर्णोद्धार करावें तथा इस मानस्तम्भ की रक्षा का उपाय करें।
(५) कासिया-परगना सिधुश्रा जाबना, तहसील पदरौन । देवरिया से २१ मील व गोरखपुर से ३४ मील । यहां चौद्धों के बहुत से प्राचीन स्मारक हैं। अनुसन्धान करने से सम्भव है कुछ जैन स्मारक भी मिल जावें।
(६) खुखुन्दो-नूनखार स्टेशन से २ मील व गोरखपुर से दक्षिण पूर्व ३० मील । इसका प्राचीन नाम कांकड़ी नग्र व किष्किन्धापुर है । यह श्री पुष्पदन्त स्वामी, नवमें तीर्थकर की जन्मभूमि होने से जैनियों का अतिशय क्षेत्र है। यहां ३० टीले हैं जिन पर किसी समय जैनियों व हिन्दुओं के मन्दिर होने के चिह्न पाये जाते हैं । इधर उधर बहुत सी जैन मूर्तियां विराजित है । एक छोटा सा वर्तमान में बनवाया हुआ जैन मन्दिर भी है जिसमें श्री आदिनाथ की एक विशाल और
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