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सं० प्रा० प्राचीन जैन स्मारक ।
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(२) मदनसागर के दक्षिण-पूर्व तट पर एक पहाड़ी है जिस पर २४ चौबीस तीर्थकरों की २४ मूर्तियां चट्टान में खुदी हैं इनमें बहुतसों पर लेख हैं । संवत् १२०६ या सन् ई० ११४८ है । ____(३) सुमेरपुर-हमीरपुर से १० मील । यह नगर भी पुराना है । चारों तरफ टीलों पर ईंटें फैली हुई हैं । यहां तीन पुराने खेड़े हैं-लखनपुर, मिरज़ापुर और सतारा जहां सिक्के प्रायः पाए जाते हैं।
कनिधम की सर्वे रिपोर्ट जिल्द २१वीं से नीचे का हाल लिखा गया है:
महोबा का प्राचीन नाम जंजाहति था। यहां खडित जैन मृर्तियों के आसनों पर छोटे २ बहुत से लेख है। उनमें से कुछ का भाव यह है नं० (१) संवत् ११६६ राजा जयवर्मा (२) सं० १२०३ (३) श्रीमान् मदनवर्मादेव राज्ये सं० १२११ आषाढ़ सु०३ शनी देव श्री-नेमिनाथ रूपकार लक्षण (४) सुमतिनाथ सं० १२१३ माघ सु० ३ गुरौ (५) सं० १२२० जेठ सुदी - रवौ साधुदेव गण तस्य पुत्र रत्नपाल प्रणमति नित्यं । (६) संधम्य समातत्पुत्राः साधु श्री रत्नपाल तस्य भार्या साधा (पुत्र कीर्तिपाल) तथा अजयपाल तथा वस्तुपाल तथा त्रिभुवनपाल जितनाथाय प्रणमति नित्यं (७) सं० १२२४
आषाढ़ सुदी २ रवौ, काल आराधियोति श्रीमत् परभार्द्धिदेव पाद-नाम प्रवर्द्धमान कल्याण विजय राज्ये । इसमें चंदेलराजाओं के नाम दिये हैं सो इस तरह पर हैं :
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