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सं० प्रा० प्राचीन जैन स्मारक । श्रीसाधु पालना आदि है। इस मन्दिर के चारों तरफ बहुत सी जैन मूर्तियां हैं। यहां के अतर १० वीं शताब्दी के प्रतीत होते हैं । यहां एक बड़ी मूर्ति शांतिनाथ जी की १४ फुट ऊंची है उस पर लेख है “संवत १०५ श्रीमान् प्राचार्य पुत्र श्री ठाकुर श्रीदेवधर सुत सुतश्री शिविश्री चंद्रेय देवाः श्री शांतिनाथस्यप्रतिमा कारितेति" | श्री संभव नाथ मूर्ति पर, जो काले पाषाण की है, यह लिखा है:-"संवत् १२१५माघसुदी ५ श्रीमान् मदनवर्मा देव प्रवर्द्धमाने विजय राज्ये गृहपतिवंशे श्रेष्ठिदेदु तत्पुत्र वाहिल्लः पाहिल्लः...प्रतिमा कारितेति तत्पुत्राः महागण, महाचंद्र, सनिचंद्र, जिनचंद्र, उदयचंद्र, प्रभृति संभवनाथम् प्रणमतिनित्यं । मंगल महा श्री-रायंकार रामदेव" । जिननाथ के मंदिर के बांएं द्वार पर सं० १०११ राजा धंग के राज्य में मन्दिर बना था तब महाराज गुरु वासवचंद्र के समय में पाहिल वंश के एक व्यक्ति ने पाहिलबाटिकादि मन्दिरजी को भेट की। जैन मूर्तियों पर सवंत् है १२०५, १२१२ वीरनाथ पर, १२१५ मदन वर्माराज्ये, १२२० अजितनाथ पर, १२३४ जैन श्रासन पर है।
कनिंघम साहब की सर्वे रिपोर्ट जिल्द दूसरी में खजराहा के सम्बन्ध में जो कुछ विशेष कथन है वह इस प्रकार है:___यह महोवा से दक्षिण ३४ मोल है। दक्षिण पूर्वीय समूह में जैन स्मारक हैं । बहुत सी खंडित जैन मूर्तियां मिली हैं उनमें से कुछ का वर्णन यह है :
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