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गोरखपुर।
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___ यह एक प्राचीन स्थान है जिसका चीनी यात्रियों ने हंसक्षेत्र के नाम से उल्लेख किया है। यहां छटी शताब्दी में राजपूत वसिष्टसिंह अयोध्या से आये, उन्होंने नवीन काशी बसाई । विशेष प्राचीन स्थान सहनकोट या नाथनगर का किला है यह पौन मोल में है । नगर के उत्तर, इस किले के पूर्व तरफ दूधनाथ के नाम से एक प्राचीन मंदिर है। इसमें अंतिम जैन तीर्थकर श्री महावीर स्वामी की भी एक छोटी मूर्ति है। यहां टीले भी बहुत से हैं ।
(8) सोहनाग-सलेमपुर से दक्षिण पश्चिम ३ मील । यहां १८ एकड़ प्राचीन स्थान है। एक टीला १०० फुट चौड़ा व ५० फुट ऊंचा है। इसके ऊपर एक हिन्दू मंदिर है । कुछ बौद्धों की मूर्तियां हैं । यहां जांच होनी चाहिये । संभव है कि जैन मूर्तियां भी हों।
नोट-भारतीय पुरातत्वविभाग को सन् १६०६-७ की रिपोर्ट से मालूम हुआ कि श्रीयुत दयाराम जी सानो एम. ए. ने सन् १६०६ में इस प्रांत में यात्रा की थी, तब आपने देवरिया से दक्षिण-पश्चिम रुद्रपुर में गमन किया था। आप लिखते हैं कि यह कई शताब्दियों तक सतासी राज की राजधानी रहा है । दूधनाथ मंदिर के भीतर गौरीशंकर मंदिर में जैनियों के अंतिम जैन तीर्थकर श्री महावीर स्वामी की एक छोटी मूर्ति है। यहां के प्राचीन खंडहरों को छोटा और बड़ा सहन कोट कहते हैं।
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