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फतहपुर ।
ने जैनियों को हटाकर १७वीं शताब्दी के प्रारम्भ में अपना अधिकार कर लिया ।
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(६) सतोन- परगना हसवा, तहसील फतहपुर फतहपुर से १५ मीऩ । बहरामपुर स्टेशन से नरायना की सड़क पर है । यह ग्राम एक बड़े टीले पर है जिससे इसकी प्राचीनता समझी जाती है। ग्राम के दक्षिण बैलगाड़ी से पुर की दरफ २ मील श्राकर बड़ी नदी के बांए तट पर बहुआधला सड़क के निकट एक छोटे मन्दिर के खंड हैं जिसको जखवलेव कहते हैंइसके द्वार पर जो लेख है उसमें जयादित्य के पुत्र दुर्गादित्य का प्रभाव वर्णित है। यहां के पाषाणों की शिल्पकला असोथर के समान है । ऐसे ही खंड औरई और में पुर भी पाये जाते हैं । पुर एक बहुत ही पुरानी जगह है। खास टीला बड़ी नदी के पास है जिस पर टूटी हुई ईंटें हैं। उसके ऊपर हाल का बना एक मन्दिर है । बगल में पत्थर है जिस पर नृत्यकारिणी व जैन या बौद्ध सम्बन्धी पशु बने हैं। मन्दिर के सामने व कुछ दूर पूर्व ऐसे ही पत्थर जमा हैं । इस टीले और पुरी ग्राम के मध्य में एक पुराना ऊजड़ क़िला है जो असोथर वंश का है इसको खीचर गढ़ी कहते हैं
नोट - असोथर में जैन मूर्तियां मिलती हैं इससे यह किला जैन राजाओं का हो सकता है ।
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