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सं० प्रा० प्राचीन जैन स्मारक ।
धारी इन्द्र समान, तथा सैकड़ों राजाओं के स्वामी, शान्तस्वरूप महाराज स्कन्दगुप्त के राज्य में तथा गुप्तों के १४१ संवत् में ज्येष्ठ मास पूर्ण में इस प्रसिद्ध, तथा साधुओं के संसर्ग से पवित्र, ककुभ नाम के ग्राम रत्न में अत्यन्त गुण सागर सामिल का पुत्र महाधनी भट्टिसोम तिसका पुत्र विस्तीर्ण यशवान् रुद्रसाम जिसका कि दूसरा नाम व्याघ्र रति था इनके पुत्र मद्र थे जो हर तरह ब्राह्मण, गुरु तथा यतियों में प्रीतिमान् थे। उन्होंने सम्पूर्ण जगत् को चञ्चल समझ कर, संसार के भय से अपने कल्याण के लिये और अन्य प्राणियों के हित के लिये मोक्ष मार्ग में प्रवृत्त कराने वाले आदिनाथ से लेकर पांच अरहंतों की पाषाण-प्रतिमायें स्थापित करा कर पुण्य-समुदाय को प्राप्त किया। तथा सुन्दर मेरु पर्वत के शिखर समान व यश को प्रगट करने वाले इस पाषाण स्तम्भ को भूमि में गड़वाया। । (नोट ) आदि कर्तन पंचेन्द्रान् का अर्थ हमारी समझ में यही पाया कि आदि से लेकर पांच तीर्थकरों की मूर्तियों को स्थापित कराया।
१ डा० फ्लीट के पाठानुसार इसका नाम केवल · व्याघ्र' था।
२ डा० लीट ने श्रादिकत' को अर्थ केवल तीर्थंकर' किया है व मर्तियों को श्रादिनाथ शान्तिनाथ, नेमिनाथ, पाश्वनाथ और महोवीर की अनुमान की हैं। विदित नहीं कि मूर्तियों पर इन तीर्थंकरों के चिह्न हैं व नहीं।
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