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सं० प्रा० प्राचीन जैन स्मारक।
नकल आगे दी है । जिसमें वर्णन है कि गुप्त संवत् १४१ में किसी 'मद्रः नाम के व्यक्ति ने पांच जैन मूर्तियों की प्रतिष्ठा कराई थी। इस स्तम्भ से उत्तर की ओर दो मंदिरों की ईंट की दिवालों के चिह्न हैं । इन दोनों में से किसी एक में वे पांच
मूर्तियां रही होगी जिनका वर्णन इस लेख में है। ___ यह भी विदित होता है कि और दूसरे बहुत से मन्दिर भी इस स्तम्भ के चारों ओर बने रहे होंगे, क्योंकि इस टीले का आकार बहुत बड़ा है।
स्तम्भ के लेख में इस स्थान का नाम ककुभ लिखा है और वर्तमान नाम ककुभ ग्राम या ककुभ बन का अपभ्रंश है।
स्तम्भ पर के लेख की नकल ( उद्धृत ' एशियाटिक सोसाइटी जर्नल' सन् १८३८ जिल्द | पृष्ठ ३७, से) यस्योपस्थानभूमि नृपति-शत-शिरःपात-वातावधूता। गुप्तानां वंशजस्य प्रविसृतयशसस्तस्य सर्वोत्तमद्धेः ।
१ गुप्त संवत् सन् ३१६ ईस्वी में महाराज चन्द्रगुप्त के राज्य सिंहा. सनारोहण करने पर प्रचलित हुआ था ऐप्ता सिद्ध हुआ है। अतः लेख का समय ३१६+१४१४५० सन् ईस्वी में पड़ता है।
२ लेख में जिन पांच मूर्तियों का उल्लेख है उसका तात्पर्य डा. भगवानलाल इन्द्र जो और डा. जीट की गय में इसी स्तम्भ पर खुदी हुई पांच तीर्थंकरों की मतियों से है। इनमें से एक (जिसका कि ऊपर वर्णन श्रा गया है )नीचे की चौकोर पीठिका के पश्चिम भाग के एक पाले में है और शेष चार ऊपर की गोल गुंबज के नीचे के चौकोर हिस्से के चारों भागों पर हैं । डा. इन्द्रनी इन्हें आदिनाथ, शान्तिमाथ, नेमिनाथ, पाश्वनाथ और महावीर की अनुमान करते हैं ( देखो का .. इन्ही. खेख नं. १५)
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