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( २६ ) विशेष ध्यान दें, उनके विषय में पूछ ताछ करें व उनकी सूचना समाचार-पत्रों को दें। समाज में ऐसी रुचि और उत्साह जागृत करने में, मेरा निश्चय है, यह ब्रह्मचारी जो की पुस्तक कार्यकारी होगी व ऐसी पुस्तकों की संख्या बढ़ाने में दूसरों को भी प्रोत्साहित करेगी।
मेरो राय में अब समय आ गया है कि एक 'जैन रिसर्च सोसाइटी' अर्थात जैन-पुरातत्व शोधक समाज का संगठन किया जाना चाहिये, जिसके सदस्य धार्मिक, साहित्यसंबंधी, सामाजिक, व ऐतिहासिक प्राचीन बातों का विशेष रूप से शोध करें व इस संबन्ध की दूसरों द्वारा की हुई शोधों का सर्व साधारण में प्रचार करें। कुछ समय हुआ दि० जैन महासभा ने जैन इतिहास विभाग स्थापित किया था । उसमें सबसे अधिक उत्साह से कार्य बाबू बनारसीदास एम. ए. ने किया। उन्होंने जैन इतिहास सीरीज नं०१ की पुस्तक बड़े परिश्रम से तैयार की जिससे जैन धर्म की प्राचीनता के विषय पर बहुत प्रकाश पड़ा और कितने ही भ्रम दूर हुए । पर अब इस विभाग का कार्य बिलकुल मंद पड़ गया है । महासभा का कर्तव्य है कि वह इस सोसाइटी की फिर व्यवस्था करे । जैसा कि ऊपर बताया जा चुका है, अब तक की जैन स्मारकों की खोजों के विवरण अंग्रेजी-पत्रों में विखरे पड़े हैं। सोसाइटी का काम होगा कि वह उन्हें सिलसिले वार संग्रह रूप देशी भाषाओं में प्रकाशित करे व इसके लिये एक स्वतन्त्र मासिक, द्विमासिक
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