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व अन्य लेखकों के वर्णनों के प्रकाश में इनका सूक्ष्म अध्ययन किया जाना चाहिये । जो लोग ऐसे परिचय लिखें व अन्वेपण करें उन्हें इस कार्य में अच्छी सफलता प्राप्त करने के लिये प्रचलित नक्शों का बुद्धि पूर्वक उपयोग करना चाहिये, हर एक स्थान के श्रास पास के समस्त चिन्हों का विशद वर्णन करना चाहिये, ठीक ठीक नाप लिखना चाहिये और फोटोग्राफी का खूब उपयोग करना चाहिये । ऐसे विवरण ( survey ) बिना खुदाई की सहायता के ही जैन धर्म के इतिहास पर और विशेष कर इस धर्म के उन क्षेत्रों में हास के इतिहास पर जहां कि किसी समय समूह के समूह लोग इस धर्म के अनुयायी थे, बहुत प्रकाश डालेंगे ।"
ब्रह्मचारी जी जैन धार्मिक तत्वों का सर्वसाधारण में प्रचार करने के लिये जो सराहनीय उद्यम कर चुके हैं व कर रहे हैं वह सब जैनियों व जैन धर्म के प्रति सहानुभूति रखने वाले व्यक्तियों को विदित ही है। हमें बड़ी प्रसन्नता है कि अब वे जैन ऐतिहासिक तत्त्वों का हिन्दी में प्रचार करने में अग्रसर हुए हैं। हमे पूर्ण श्राशा है कि सब इतिहास प्रमी इस प्रकार के प्रयत्नों में उत्साह दिलावेंगे ।
इतिशम्
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हीरालाल जैन