Book Title: Sanyukta Prant Ke Prachin Jain Smarak
Author(s): Shitalprasad Bramhachari
Publisher: Jain Hostel Prayag

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Page 39
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir या त्रैमासिक पत्र निकाले । अब तक गवेषणात्रों में जैनियों ने बहुत कम भाग लिया है पर अब ऐसी उदासीनता से कार्य नहीं चलेगा। जो खोज विदेशी विद्वानों द्वारा उनके हमारी विशेष २ बातों से अपरिचित और अनभिज्ञ होने के कारण सैकड़ों वर्षों में होती हैं वे ही हम यदि उनके समान उत्साह, प्रयत्न और युक्ति से काम ले तो महीनों व दिनों में कर सकते हैं। इस कार्य से ऐतिहासिक ज्ञान को वृद्धि, समाज की उन्नति और धर्म की प्रभावना होगी । इसलिये सब भाइयों को इसमें योग देना चाहिये। जिन्हें पूर्व पुण्य के उदय से लक्ष्मी प्राप्त है उनकी इस ओर रुचि जाना नितान्त आवश्यक है। इस विषय में सर विन्सेन्ट स्मिथ के कुछ शब्द उद्धृत करने योग्य हैं । वे लिखते हैं: “My desire is that members of the Jain commu nity and more specially the wealthy members with money to spare, should interest themselves in archaeological research and spend money on its prosecution with special reference to the history of their own religion and people. अर्थात् “मेरो अभिलाषा है कि जैन समाज के सदस्य, और विशेषतः धनी सदस्य, जिनके पास व्यय करने को द्रव्य है, पुरातत्त्वानुसन्धान में रुचि लेने लगे और विशेष रूप से अपने ही धर्म और समाज के इतिहास के संबंध में खोज कराने के लिये कुछ द्रव्य व्यय करें।" For Private And Personal Use Only

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