________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
उनके साथ दक्षिण को प्रस्थान करने का विवरण है। पर इतिहास लेखक बहुत समय तक इस कथन की सत्यता में विश्वास करने को तैयार नहीं हुए। पर जब मैसूर राज्य में 'श्रवण वेल गुल ' के चन्द्रगिरि पर्वत पर के लेखों का पता चला और उनकी शोध की गई तब इतिहासज्ञों को मानना पड़ा कि निस्सन्देह जैन समाचार इस विषय में बिलकुल सत्य हैं । वहां का सब से प्राचीन लेख, जो भद्रबाहु शिला लेख के नाम से प्रसिद्ध है, ईसा की प्रारम्भिक शताब्दियों में लिखा गया प्रमाणित किया जाता है । इस लेख में यह समाचार है कि परमर्षि गौतम गणधर की शिष्य परम्परा में भद्रबाहु स्वामी हुए । उन त्रिकाल-दर्शी महात्मा ने अ निमित्त-ज्ञान से जाना कि उत्तरापथ ( उत्तर भारत ) में एक भीषण दुष्काल द्वादश वर्ष के लिये पड़ने वाला है । अतः उन्होंने अपने 'संघ' को लेकर दक्षिणा पथ को गमन किया। बोच में अपनी प्रायु का अल्प भाग शेष रहा जान उन्होंने संघ को तो आगे बढ़ने के लिये प्रस्थान कराया और आप स्वयं केवल एक शिष्य प्रभाचन्द्र के साथ 'कट वन' नामक पहाड़ी पर ठहर गये और वहीं सन्यास विधि से
{ Inscriptions at Sravana Regula by Lewe Rice Ins. No. 1. व जैन सिद्धान्त भास्कर किरण १, पृ. १५
For Private And Personal Use Only