________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
( २० )
अर्थात् ' चन्द्रगुप्त जैन समाज के व्यक्ति थे' यह जैन ग्रन्थकारों ने एक ऐसी स्वयं-सिद्ध और सर्व प्रसिद्ध बात के रूप से लिखा है जिसके लिये उन्हें कोई अनुमान प्रमाण देने की आवश्यकता प्रतीत नहीं हुई । इस विषय में लेखों के प्रमाण बहुत प्राचीन और साधारणतः सन्देह रहित हैं । मैगस्थनीज़ के कथनों से भी झलकता है कि चन्द्रगुप्त ने ब्राह्मणों के सिद्धान्तों के विपक्ष में श्रमणों ( जैनमुनियों ) के धर्मोपदेशों को अङ्गीकार किया था' ।
चन्द्रगुप्त के जैन होने के इतने अकाट्य प्रमाण मिलने पर प्रसिद्ध इतिहासकार 'सर विन्सेन्ट स्मिथ को अपनी 'भारत के प्राचीन इतिहास' की बहुमूल्य पुस्तक के तीसरे संस्करण मैं यह लिखना ही पड़ा किः
'I am now disposed to believe that the tradition probably is true in its main outline and that Chandragupta really abdicated and became a Jain
ascetic.’*
अर्थात् 'मुझे अब विश्वास हो चला है कि जैनियों के कथन बहुत करके मुख्य २ बातों में यथार्थ हैं और चन्द्रगुप्त सचमुच राज्य त्याग कर जैन मुनि हुए थे । जायसवाल महोदय समस्त उपलभ्य साधनों पर से अपना मत स्थिर कर लिखते हैं:
* V. Smith E.H.I.
Po 146.
For Private And Personal Use Only