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( २४ ) तीर्थंकर जन्मे थे । और यहां से निकट हो 'चन्द्रपुरी चन्द्र प्रभु की व सिंहपुरो (सारनाथ ) श्रेयांसनाथ की जन्म भूमि है । 'हस्तिनापुर' की पवित्रता से कौन जैनी अपरि. चित होगा। यहां शान्तिनाथ कुन्थुनाथ व अरहनाथ तीर्थंकरों के गर्भ, जन्म, तप और शान चार २ कल्याणक हुए हैं । यहीं के राजा श्रेयांस' ने आदिनाथ भगवान को सब से प्रथम आहार देकर आहार दान की विधि का प्रचार किया था। 'अहिच्छत्राश्री पार्श्वनाथ भगवान् की वह तपोभूमि है जहां उन्होंने पापी 'कमठ' के घोर उपसर्गों को सहा था। 'प्रयाग' के विषय में कहा जाता है कि यहां आदिनाथ भगवान ने तप किया था ।व यहां से समीप ही जीनियों की प्रसिद्ध नगरी कौशाम्बी है जहां पद्मप्रभ तीर्थंकर का जन्म हुअा था व जिनके तप और ज्ञान कल्याणक निकटवर्ती 'प्रभाक्षेत्र' नामके पर्वत पर हुए थे। ‘पद्म प्रभ' के नाम से ही यह स्थान अब पपौसा व फफौसा कहलाता है । इसी प्रकार किष्किन्धापुर (खुखुन्दो), रत्नपुरी कम्पिला श्रादि अतिशय क्षेत्र इस प्रांत में विद्यमान हैं। अंतिम केवली जम्बू स्वामी की निर्वाण भूमि भी इसी प्रान्त के भीतर मथुरा के पास चौरासी नामक स्थान पर है जहां अब भी उनके नाम का विशाल मन्दिर बना हुआ है। इनमें
१-दिगम्बर जैन डायरेक्टरी
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