Book Title: Sanmatitarka Prakaranam Part 1
Author(s): Sukhlal Sanghavi, Bechardas Doshi
Publisher: Gujarat Puratattva Mandir Ahmedabad
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सर्वाशे दूर करी शकाय. परन्तु प्रयत्न छतां तत्त्वसंग्रहनी पेठे अखंडपणे संमतिनी टीका साये सरखावी शकाय तेवा बौद्ध के अन्यदर्शनसंबंधी कोई ग्रंथो ठेठ सुधी मळ्या नहि तेथी पांचमी गाथानी टीकाने संपूर्णपणे शुद्ध करवानुं काम अमारे माटे अशक्य ज रही गयु.
श्रीअभयदेवसूरिए पांचमी गाथानी टीकामां पर्यायास्तिकनयनो विभाग तेम ज तेनुं उतरोत्तर सूक्ष्मपणुं दर्शाववा ऋजुसूत्र, शब्द, समभिरूढ अने एवंभूत ए चार नयोनुं विस्तृत स्वरूप सौत्रांतिक आदि चार शाखाओना जे बौद्धग्रंथो के तेना प्रकरणोने आधारे वर्णव्यु तेम ज घटाव्युं छे ते मूल भूत ज बौद्धग्रंथो के तेना उपरथी अक्षरशः थयेल उतारावाळा अन्य ग्रंथो ज्यांसुधी न मळे त्यांसुधी पांचमी गाथानी टीकाने संपूर्ण शुद्ध करवी कोई पण रीते शक्य नथी. ए टीकाने शुद्ध करवाना मौलिक अने महत्त्वना साधनो प्राप्त न थया छतां तेने शुद्ध करवामाटे अमे बीजा उपलब्ध साधनोनो बहु छुटथी अने कंटाळ्या विना उपयोग को छे. ए साधनोमां अनेक बौद्ध, जैन अने वैदिक ग्रंथोनो समावेश थाय छे परन्तु ते बधामां शुद्धिकार्यमा उपयोगी धवानी दृष्टिए प्रमेयकमलमार्तडवें स्थान मुख्य छे.
लेखकोनो असली प्रतनी लिपि वाचवानो भ्रम, अर्थ- अज्ञान के तेनो विपर्यास, पठन-पाठननो अभाव अने प्रतिना पत्रोनुं खंडितपणुं के अस्तव्यस्तपणुं इत्यादि अनेक कारणोने लीधे अशुद्धिओ पण विविध प्रकारनी उत्पन्न थयेली छे. एने सुधारवा अमे मुख्यपणे त्रण रीतो अखत्यार करेली छे. (१) संमतिटीकानी तेना पूर्ववर्ती के उत्तरवर्ती समानविषयक ग्रंथो साथे सरखामणी, (२) अर्थदृष्टि अने (३) भाषादृष्टि. ज्यां टीकाने शुद्ध करवामां अन्य ग्रंथोनी सरखामीनो उपयोग कर्यो छे त्यां पण अर्थ अने भाषादृष्टि छोडी नथी. परन्तु ज्यां तेवी सरखामणीनुं साधन नथी मळ्युं त्या अर्थदृष्टिने प्रधान राखी भाषादृष्टिनी मददथी पाठशुद्धि कल्पी छे अने ज्यां अर्थदृष्टि पण काम न करी शकी त्यां केवळ भापादृष्टिनो उपयोग करी पाठशुद्धि कल्पी छे अने चालु संकेतप्रमाणे असली पाठने कायम राखी शुद्धरूपे कल्पेला पाठने कोष्ठकमां दाखल करेल छे अने बनी शक्युं त्यां ते कल्पेला पाठना संवादी उल्लेखो नीचे टिप्पणीमा ते ते ग्रंथना नाम साथे कर्या छे.
____ आ त्रणे पद्धतिओनो यथाशक्ति संपूर्ण उपयोग कर्या छतां पण पांचमी गाथानी टीका घणे स्थळे घणा प्रमाणमां अशुद्ध अने असंलग्न रही गइ छे. जे जे अंशो अमने खंडित, पुनरुक्त, विपर्यस्त अने असंलग्न लाग्या छे ते बधानो आदिभाग (??) अथवा [ ?? तथा अंतभाग (??) अथवा ?? ] आवा चिह्नथी अंकित कर्यो छे. उदाहरणार्थ जुओ पृ० ३२२ तथा ३३३ वगेरे. बहु प्रयत्नने परिणामे पांचमी गाथानी टीकाना पूर्वार्द्धमांथी तो घणी अशुद्धिओ ओछी थइ छे परन्तु उत्तरार्द्ध अने तेमां य तेना अंत भागमा मोटी अने खटके एवी घणी अशुद्धिओ रही ज गइ छे.
छट्ठी गाथानी टीकानो केटलोक प्राथमिक अंश (पृ० ३७९-३८५) तो तत्त्वसंग्रहना शब्दब्रह्मपरीक्षाप्रकरणनो प्रायः अक्षरशः उतारो छे. तेथी एटलो भाग तत्त्वसंग्रहनी मदद द्वारा तद्दन शुद्ध थयो छे. एटलुंज नहि पण नीचे टिप्पणीमां सरखामणी माटे अपाएल तत्त्वसंग्रहनी मूल कारिकाओ अने कचित् कचित् पंजिकाना अंशोवडे एटलो भाग अभ्यासको माटे बीजी गाथानी टीकानी पेठे न वधारे उपयोगी बनेलो छे. एटला अंश पछीनो छट्ठी गाथानी टीकानो बाकीनो पृ० ३८६ थी बधो अंश मोटे भागे बौद्ध मंतव्यनी चर्चाथी भरेलो छे. ए भाग साथे अक्षरशः सरखावी शकाय तेवो ग्रंथ न मळवाथी घणी अशुद्धिओ दूर कर्या छतां पण क्वचित् कचित् अशुद्धि रही गइ छे पण ते पांचमी गाथानी टीका जेवी गूढ नथी. एकंदर आ त्रीजा भागमा (पांचमी गाथानी टीका बाद् करीए तो) अशुद्धिओ बहु विरल रहेवा पामी छे.