________________
खण्ड १ | जीवन ज्योति मखाणीबाई के बात छू गई । उन्होंने घर आकर अपने पति (धर्मनिष्ठ श्रावक श्रेष्ठ मांगीलालजी सा. गोलेच्छा) के समक्ष बरखेड़े संघ में ले जाने की बात रखी तो प्रसन्न होकर बोले-भावना बहुत शुभ है, अवश्य संघ ले जाओ। अभी तो मुनिराजों (दर्शनविजयजी आदि जो त्रिपुटी के नाम प्रसिद्ध थे) का भी संयोग है । ऐसा स्वर्ण अवसर सौभाग्य से ही मिलता है । इस अवसर को चूकना नहीं चाहिए।
मांगीलाल जी की स्वीकृति से सभी ओर हर्ष की लहर फैल गई। ३-४ श्रावकों को साथ लेकर मांगीलालजी ने श्री दर्शनविजय जी म. सा. के समक्ष संघ निकालने और उसमें उनके सम्मिलित होने की प्रार्थना की तो म. सा. ने भी सहमति दे दी । फाल्गुन शुक्ला द्वितीया के दिन, जब बरखेड़ा तोर्थ का वार्षिक उत्सव मनाया जाता है, उस अवसर पर संघ ले जाने का निश्चय हो गया।
मांगीलाल जी गोलेच्छा से चरितनायिका जी के परिवार का गोत्रीय सम्बन्ध तो था ही निकट का कौटुम्बिक पारिवारिक सम्बन्ध भी था। अतः इनके परिवार से भी इस संघ में सम्मिलित होने का आग्रह किया गया।
फाल्गुन कृष्णा १४ संध्या के शुभ मुहूर्त में खूब धूमधाम से हर्षोत्सव के साथ चतुर्विध संघ ने जयपुर से प्रस्थान किया। इस संघ में लगभग १२०० श्रावक-श्राविका, पू. दर्शनविजय जी आदि ३ मुनिराज और पू. प्र. श्री ज्ञानश्री जी म. सा., श्री उपयोगश्री जी म. सा. तथा ८ साध्वियां भी थीं। सज्जनकुमारी तो साथ थी हीं।
बरखेड़ा तीर्थः छः री पालित संघ-संघ बड़े हर्षोल्लास और बैंडबाजे के साथ बरखेड़ा तीर्थ फाल्गुन शुक्ला २ के दिन पहुँचा। वहाँ बड़े ठाठ-बाट के साथ स्नात्र पूजा हुई। संघपति मांगीलालजी गोलेच्छा को माला पहनाई गई, मध्याह्न में बड़ी पूजा (सत्तरहभेदी पूजा) तथा उसके उपरान्त स्वामी वात्सल्य का कार्यक्रम रखा गया । सभी कार्यक्रम सानन्द सम्पन्न हुए । पूज्य गुरुदेव और साध्वी जी म. सा. के सान्निध्य में सर्व संघ ने संघपति श्री मांगीलालजी गोलेच्छा का अभिनन्दन कर सम्मान किया। वस्तुतः ७ दिन का यह स्वीट एण्ड शोर्ट (छोटा और मधुर) संघ जयपुर के इतिहास में अपनी अमर छाप छोड़ गया।
ऐसे आयोजन पुण्यानुबन्धी पुण्य के कारण बनते हैं साथ ही जैन शासन की प्रभावना में भी वृद्धि होती है।
वहाँ से गुरुदेव (तीनों मुनिराज) तो आगे की ओर विहार कर गये किन्तु साध्वी समुदाय वापिस जयपुर आया। उसके दो कारण थे--प्रथम, जयपुर संघ का अत्याग्रह और द्वितीय वर्षीतप की साधना और इस तप का पारणा जयपुर में ही करना उचित समझा गया।
वर्षीतप का पारणा अक्षय तृतीया के दिन जयपुर रेलवे स्टेशन के समीप पुंगलियों के मन्दिर (जहाँ ऋषभदेव भगवान की प्रतिमा विराजमान है और उसी से जुड़ी हुई धर्मशाला है) में बड़ी धूमधाम से अठाई महोत्सवपूर्वक स्वयं श्रीमान् गोकुलचन्दजी पुंगलिया की धर्मपत्नी की ओर से हुए ! इसका कारण पारणा करवाने की उनकी उत्कृष्ट भावना थी, इसीलिए संघ की अनुमति से उन्हें यह लाभ प्रदान किया गया।
धर्माराधना का प्रभाव-वर्षीतप तथा त्याग-संयम-तप की रुचि से चरितनायिकाजी के वैराग्य संस्कार दिनोंदिन दृढ़ होते जा रहे थे। इन सबका प्रभाव आपके परिवारीजनों पर भी पड़ना शुरू हो गया। आपकी संगति का असर होने लगा। सत्संगति तो पापी को भी धर्मात्मा बना देती है, धर्मविरोधी को धर्माराधक बना देती है। खण्ड ११३
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org