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खण्ड १ | जीवन ज्योति
साहित्यिक अनुसंधान करने वाला, वाक्चातुर्य, न्यायज्ञाता बनाता है।
गुरु की दृष्टि शनि पर होने से आगमों को जानने वाला, न्यायशास्त्रों का ज्ञाता और सौलीसिटर जैसा प्रभावशाली व वाक्चातुर्य से युक्त बनाता है।
इस प्रकार ज्योतिषी द्वारा बताये गये सभी फलादेश गुरूवर्याधी के जीवन में फलीभूत होते हुए देखे जा रहे हैं।
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__पंडितजी ने उक्त जन्म-पत्रिका पढ़ी, ग्रह-गोचर लग्न आदि देखे, जन्म कुण्डली पर गौर किया और गम्भीर चिन्तन में डूब गये। उनके मस्तक पर गम्भीरता की रेखाएँ उभर आईं।
पंडितजी की गम्भीर मुखमुद्रा को देखकर श्री गुलाबचन्दजी चिन्तित हो गये, उनका उद्विग्न स्वर निकला
"क्या बात है पंडितजी ! आप गम्भीर कैसे हो गये ? पुत्री की जन्म-कुण्डली में कुछ अशुभ है क्या?
पंडितजी ने गम्भीर स्वर में कहा
"अशुभ तो कुछ भी नहीं, सब शुभ ही शुभ है। ग्रह तो सभी उत्तम है, ऐसी जन्म-पत्री तो विरलों की ही होती है। आपकी पुत्री अवश्य ही तेजस्वी, यशस्वी बनेगी।" ।
"फिर आपकी गम्भीरता का क्या कारण है ?" गुलाबचन्दजी की उद्विग्नता अब भी कम नहीं हुई थी।
"गम्भीरता का कारण है ।" पंडितजी ने कहा-"आपने जिस इच्छा से मुझे यह जन्म-पत्रिका दिखाई है, उसमें मुझे कुछ बाधा दिखाई दे रही है।"
___ "तो क्या पुत्री का विवाह नहीं होगा ?" गुलाबचन्दजी के मुख से अनायास ही ये शब्द निकल गये क्योंकि उनके मस्तिष्क में सज्जनकुमारी की दीक्षा-भावना तैर गई थी।
"स्पष्ट ही सूनना चाहते हो तो सुनो।" पंडितजी ने कहा-"तुम्हारी पुत्री मंगलीक है। इसलिए इसका विवाह मंगलीक लड़के के साथ करना उचित रहेगा। किन्तु फिर भी मंगल दाम्पत्य-सुख में बाधा तो देगा ही। फिर भी घबराने की बात नहीं है, आप मंगलीक लड़के की ही खोज करें। सब कुछ मंगल होगा।"
पंडितजी इतना कहकर चले गये और श्री गुलाबचन्दजी मंगलीक लड़के की खोज में जुट गये।
२ वर्ष के अनवरत प्रयास के बाद जयपुर के ही स्व० दीवान श्री नथमलजी सा. गोलेच्छा के पौत्र एवं श्री सौभागमलजी के सुपुत्र श्रीमान् कल्याणमलजी की जन्म-पत्री सज्जनकुमारी की जन्म-पत्री से अच्छी मिली।
निराशा-हताशा की घड़ियाँ समाप्त हुई। प्रसन्नता का वातावरण बन गया। यथेष्ट दानदहेज, स्वागत-सत्कार के साथ १२ वर्षीय सज्जनकुमारी का विवाह श्री कल्याणमलजी के साथ कर दिया गया। सज्जनकुमारी बहू बनकर ससुराल में पहुंच गईं गृहलक्ष्मी के रूप में ।
___ नया घर, नया वातावरण, अपरिचित लोग-यही सब कुछ मिलता है नववधू को ससुराल में । इन्हीं लोगों और वातावरण के साथ उसे घुल-मिल जाना पड़ता है; जिस व्यक्ति को पहले कभी देखा तक नहीं उसे सर्वस्व समर्पण करके उसके व्यक्तित्व के साथ एकाकार होने में ही नववधू की सार्थकता है। १. गोलेच्छा परिवार का परिचय जीवन-वृत्त के परिशिष्ट में देखें।
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