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जीवन ज्योति : साध्वी शशिप्रभाश्रीजी इस समामेलन, समायोजन और समर्पण में समुराली जनों का सहयोग अपेक्षित होता है। वे यदि प्रेम से, वात्सल्य और प्यार से नववधू को अपनावें, सास बहू को पुत्री से बढ़कर माने, ननद उसे अपनी बहन जैसा प्यार दे, ससुर अपनी पुत्री माने तभी सुखद वातावरण बनता है। साथ ही नववधू भी अपनी विनय, शालीनता, कर्तव्यपरायणता, शिष्ट-मिष्ट वाणी से ससुरालीजनों के हृदय में अपना स्थान बनाती है।
ये सब गुण सज्जनकुमारी को माता की जन्म घूटी के साथ ही मिल गये थे और १२ वर्ष तक उनका सिंचन-संवर्धन होता रहा था । अतः वह शीघ्र ही ससुराल के परिवारी जनों में घुल-मिल गयी । सभी उसकी प्रशंसा करते थे।
पारिवारिक कर्तव्यों के साथ-साथ सज्जनकुमारी अपने स्वीकृत व्रत-नियमों का दृढ़ता से पालन करती थीं; किन्तु उसका व्रत-नियम-पालन उसके पतिदेव को अच्छा नहीं लगता था । वे व्रत-नियम छोड़ने के लिए कहते, पर सज्जनकुमारी यद्यपि जवाब तो न देती; पर टाल जाती, धर्माचरण न छोड़ती । इस पर पतिदेव जब उग्र हो जाते तो सज्जनकुमारी का हृदय व्यग्र हो जाता, मन में वैराग्य-भावना भर जाती; पर अपनी भावना को प्रगट न करती क्योंकि इससे परिवार में संक्लेश का वातावरण बन सकता था, जिसे सज्जनकुमारी नहीं चाहती थीं।
कोटा में निवास और विचार-परिवर्तन-विवाह के एक वर्ष पश्चात् आप किसी कार्यवश अपने संपूर्ण परिवार के साथ अपनी भूआसासुजी के घर कोटा गये । भूआसासुजी सेठानी श्री उमराव कवरबाई सा० थीं। ये सेठ श्रीनथमलजी की पुत्री और कोटा के प्रसिद्ध रायबहादुर की पदवी से विभूषित माननीय सेठ केसरीसिंह जी बाफना' की धर्मपत्नी थीं । ये मंदिरमार्गी आम्नाय को मानती थीं।
भूआसा० ने कल्याणमलजी को काम सीखने के लिए अपने पास रख लिया, फलतः सज्जनकुमारी को भी भूआसा० के पास रहने का अवसर प्राप्त हो गया।
भूआसा० अपने धर्म क्रियाओं में बहुत ही चुस्त और दृढ़ थीं। उनके घर का खान-पान, रहनसहन सात्विक था, वातावरण भी धर्ममय था। भूआसा० का व्यक्तित्व काफी प्रभावशाली था। घर में तो उनका प्रभाव था ही, समाज में भी काफी प्रभाव था, उनकी इच्छा को ही आज्ञा मानकर शिरोधार्य किया जाता था।
चरितनायिका को वहाँ का वातावरण और भूआसा० का स्वभाव बहुत पसंद आया । इसके अतिरिक्त चरितनायिका सज्जनकुमारी की रुचि जमने का एक और भी कारण था, वह था नंदकुवर बाई सा०।
नंदकवरबाई सा० श्री सज्जनकुमारीजी की हमउम्र (समवयस्क) थीं। उनका विवाह सज्जनकुमारीजी के विवाह के दो महीने बाद हुआ था । ये सेठ केसरीसिंहजी की द्वितीय पत्नी थीं। यह विवाह स्वयं उमरावकुवरजी ने आग्रह करके कराया था। कारण यह था कि उमरावकुंवरजी के दो पुत्र हुए किन्तु उनमें से जीवित कोई न बचा। तदुपरान्त दीर्घकाल तक कोई सन्तान नहीं हुई। संतान-प्राप्ति के लिए स्वयं उमरावकुवरजी ने आग्रह करके नंदकुवर का विवाह अपने पति सेठ केसरीसिंहजी के साथ कराया।
समवयस्क होने के कारण सज्जनकुमारीजी और नंदकुवरजी में पारस्परिक प्रेम हो गया। १. बाफना परिवार का परिचय परिशिष्ट में दिया गया है।
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