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काल अनादिय मूढ-मति, पर-परिणति-रतिलीन; संत-प्रभुनी सेवना न लही सुदृष्टि-हीन...२ सखि ! कृपा करी प्रभु तणा, कराव दर्शन आज ;
योगावंचक करणी ए, सहजानंदघन राज...३ सुविधि चै०६
उभय शुचि भावे भजी, पूजत सुविधि जिनेश ; प्रसन्न चित्त आणा सहित स्व-स्वरूप प्रवेश १ अंग अन ए निमित्त छ, उपादान छे भाव ; प्रतिपत्ति-पूजा तिहां, प्रगटे . शुद्ध स्वभाव २ शुद्ध स्वभावी संतनी, सेव थकी लही मर्म ;
स्वरूप सेवन थी लहो, सहजानंदघन धर्म"३ शीतल चैः १० .
भासे विरोधाभास पण, अविरोधी गुण-वृन्द ; शीतल हृदये ध्यावतां, नाशे भव भूम फंद.१ स्वरूप रक्षण कारणे, कोमल तीक्षण भाव ; उदासीन पर-द्रव्य थी, रहिमे आप स्वभाव...२ स्वानुभूति अभ्यास ना, अनन्य कारण संत ;
सहजानंदघन प्रभु भजी, करो भवोदधि अंत..३ श्रेयांस चै० ११
भाव अध्यातम पथमयी, श्रेयांस सेवा धार ; हठ योगादिक परिहरी, सहज भक्ति-पथ सार...१
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