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जड़ जड़ किरिया जड़ फल रीता, ज्ञान क्रिया आनंद फलयुक्ता...
धर्म०२ परमगुरु सम सत्ता धारी, हूँ सहजात्म स्वरूप न नारी; पुरुष न षंढ न चउगति धारी, ना कोई वर्ण न जाति हमारी...
धर्म०३ मैं शास्वत पद के धर्ता हूँ, सहज समाधि के कर्ता हूं; मैं सहजानंदघन आत्मा हूँ, मैं ही आत्मा परमात्मा हूं...धर्म० ४ (६०) वड़वा आश्रम के प्रति
__ हंपि, ता० २७-६-६६ वड़वा नी वाड़ी लीली छम रहो रे लो० आ कालेआ जंबु भरत मां रे लोल, हतोभूख मरो आध्यात्मरे : आत्मार्थी जनो विरला वच्या रे लोल, त्यारे अवतर्या राज
परमात्मरे...१ जे वड्या नी छाये मीठी वावड़ी रे लोल, त्यां खोल्युं सदावतधामरे मृतप्राये अमृत रस सिंची ने रे लोल, आप्यु अमरफल ने विश्राम
रे.. वडवा० २ मृतप्राय केई करी जीवता रे लोल, गया परम कृपालु निज धामरे आ वाडी तेनीकरी स्थापना रे लोल, शुकराजे अपी निज आम
रे...वडवा० ३ मत पंथ खाडा ने टेकरा रे लोल, कर्यु समीरण री हाथ रे ; नव वाडे विशुद्ध ए वाड़ी मां रे लोल, वाव्या समकित बीज
अभिरामरे...वड़वा०४
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