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परख बिना कच्चे गुरु- पद पर बनी अंध शिर पटकी : . देव धर्म
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गुरु सतत उपासत, हटी न चाल घुंघट की· · लागी० ३ पियु- मिलन - विधि पूछत ही कहें, बातें अंट संट की : तातें तैसे कच्चे गुरु सों, अब मुझ मति छुटकी • • लागी० ४ कलिकालें सच्चे गुरु दुर्लभ, यही चिन्ता खटकी : यदि मिलें, लहं पिय-मिलन-विधि, सहजानन्द घट की लागी०५
(१४१) विरह राग-होरी
मेरे घट सुलगी होरी - किस विध जीउं मैं गौरी पियु पियु रटतो पंखी पपैयो, सुन पियु सुमरन जोरी पियु पियु पियु पियु सांस उसांसे, रटत रटत भई बौरी प्रियतम मिलन में भोरी मेरे० १ ज्यों ज्यों सांस निसांसा बाढत, बफ बफ ऐंजिन को री त्यों त्यों विरहानल तनु व्यापत, नखशिख जारत लौ री... जीवन आशा विछोरी मेरे० २ अँसुअन धारा अविरत वरसत, तपत बुझात न मोरी बूझत जठरानल विरहानल - बाढ़त अचरिज ओरी
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८-१०-५७
सूझत नयन कपोली मेरे० ३
धबधबधबगत हियगत धमनी, तड़फत जिय मछलो री किस कमलासन नाथ विराजत, सहजानन्द छको री :
तजि के विरहिनी भौंरी मेरे०४
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