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अयोगी केवल भेद बे, क्षीयमाण-क्रम-योग ;
धुर समयी ने इतर तो नष्ट-योग ज अयोग...५६ योगी अयोगी सिद्ध ए, केवल भेद प्रभेद ;
व्यवहारे पण निश्चये, केवलज्ञान अभेद• • ५७ निज स्वभावना ज्ञान मां, तन्मय शुद्ध उपयोग ;
निर्विकल्प परिणमनता, केवलज्ञान स्व-भोग...५८ आप आप आपथी, आप वड़े निज काज ;
करे भोगवे आपने, आप स्वयंभू साज • ५६ अभंग आनंदोत्पत्तिज, समूल दाह - विनाश;
अधिष्ठान ध्रुवता पणे, आप स्वयंभू वास. ६० कोई पर्याये उत्तपत्ति ज, भंग पर्यय कोइ एक;
गुण स्वभावे ध्रुवता, प्रति द्रव्ये एक मेक ६१ दाह मुक्त साम्राज्य मां, अनंत वीर्य प्रकाश ;
ज्ञानानंदे परिणमे, ज्ञानी स्वरूप विलास ६२ देह - जन्य सुख-दुख नथी, अतीन्द्रिय प्रभु चंग ;
श्रीफल गोलावत् रहे, तन- मठ-धर्म असंग ... ६३ ज्ञाने परिणत ज्ञानी ने प्रतिबिंबित स्वलक्ष; सरहद आत्म प्रदेश थी, लोकालोक प्रत्यक्ष ६४
आत्मा ज्ञान प्रमाण छे, ज्ञान ज्ञेयं
प्रमाण ;
लोकालोक न ज्ञेय छे, अतः संवंगत ज्ञान .. ६५
दूध मां व्यापे नीलिमा, नीलम नाख्ये जेम ;
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ज्ञान प्रभाए आत्मनी, सर्व व्यापकता तैम..६६
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