Book Title: Sahajanand Sudha
Author(s): Chandana Karani, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Shrimad Rajchandra Ashram

View full book text
Previous | Next

Page 232
________________ ज्ञान प्रमाण न आत्म जो, हीनाधिक ज्ञानात्म; . . अधिक ज्ञान तो जड़ बने, जाणे ना हीनात्म.६७ ज्ञान रूप ज्ञानी अहो ! ज्ञान विषय जग-सर्व ; . . सर्वगत ज्ञानी अतः, ज्ञानी. मत छ सर्व...६८ ज्ञान नये ज्ञानातमा, अन्ये नये 'अन्यान्य ; ... अनंत गुण पिण्डातमा, ज्ञान तो आत्म अनन्य...६६ जगत जगत स्वरूप छे, आत्मा ज्ञान स्वरूप ; . आत्मा जग नी भिन्नता, जेम नेत्र ने रूप...७० दर्पणगत प्रतिबिंब तो, चे दर्पणमय जेम ; .. ज्ञान-दर्पणे अकता, जगत आत्म नी तेम:..७१ एम कथंचित भिन्नता, अभिन्नता छे जेम ; - भिन्नाभिन्न उभय नये, ज्ञानी जगत ज तेम".७२ जाणे स्व पर सर्वस्व पण, 'ज्ञप्ति तृप्ति अभंग; . . प्रतिबिंबितं पर-ज्ञेय थी, केवलज्ञान असंग.७३ केवल आत्म स्वभाव ना, अखंड ज्ञाने लीन ; .. .... केवलज्ञानी ते कह्या; सहजानन्दघन पीन...७४ जिन पद निज मांहे लखे, आप्त बोध थी जेह; . ..... स्वरूप ज्ञान अनुभूति थी, छे श्रुत-केवली तेह""७५ श्रुत जड़ोपाधि टालता, रहे शेष निज ज्ञप्ति ; ....... प्रातिभ ज्ञान प्रकार ते, सहजानन्दघन तृप्ति..७६ आत्म स्थैर्य तारतम्य पण, आत्म अनुभवे तुल्य ; ... .: . . . . . . . उभय केवलज्ञानी छे, जेम अरुण ने सूर्य...७७ २०३ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276