Book Title: Sahajanand Sudha
Author(s): Chandana Karani, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Shrimad Rajchandra Ashram

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Page 265
________________ जन्म मृत्यु दुःख मां बधे, अरे ! एकलो हूँ ज; भान्तिथी जन्म्यो मुओ', पण अहो ! अमर छु ज १४६ शास्वत दर्शन - ज्ञानमय, एक मुझ आतमराम ; अन्य संयोगी भाव सौ, तेनु मने न काम• • • १४७ त्रिविध-त्रिविधे वोसिरे, दुश्चेष्टा करी जेह ; त्रिविधे सामायिक करू, निर्विकल्प गुण-गेह... १४८ वैर नथी मने कोइ थी, सौथी समता पीन; सौ आशा वोसरावी ने थाउं समाधि लीन १४६ शांत : दांत विक्रान्त भव-भीरू सत्पुरुषार्थी ; अधिकारी पच्चक्खाण नो, सहज समाधि अर्थी... १५० प्रत्याख्यान - रहस्यमां, वृत्तिओ जेनी लग्न ; भेदाभ्यासे रत सदा, सहजानन्दघनमग्न १५१ शुद्ध आलोचना : त्रिविध कर्म व्यतिरिक्त जे, निष्कर्म चेतन ध्यान ; t कहिए शुद्ध आलोचना, जेम खड्ग ने म्यान. १५२ आलोचना अविकृतिकरण, आलु छन भावशुद्धि ; २३६ चभेदे आलोचना, करतां चित्त विशुद्धि. १५३ जे समरस मन मन्दिरे, देखे आतम - देव ; आलोचन सार्थक्य ते, कहे देवाधिदेव १५४ समता भाव अंगूळणे, लुंछन आश्रव - स्वेद ; चिद्धातु- घनमूर्तिनु, आलु छन निर्वेद• • • १५५ १ मर्यो २ रहुं ३ अंगलुंछणे Jain Educationa International .. For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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