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- (१९८) दर्शन पूजा स्तवन
[चाल-ऋषभ जिनेश्वर प्रीतम माहरो रे]
चलो सखि श्रद्धा ! प्रभु मंदिरे रे, दर्शन-पूजन-काज ;
प्रभु दर्शनथी आत्म दर्शन सधे रे, पूजत पूज्य-स्वराज- चलो० १
असंख्य प्रदेशी शुद्ध मन-मंदिरे रे, प्रभु सहजात्म स्वरूप ; सर्वागे व्यापक नित्य ध्याइये रे, अनंत चतुष्ठय भूप.. चलो०२
पांच मिथ्यात्व-वमन ते अभिगमा रे, दश+त्रिक(३०)मोहनिय-स्थान
अनंतानुबंधी-चउ-साथीओकरे, तजी करो बहुमान;.. चलो०३
लणी दृष्टि-मोह-त्रिक ढगली००० करो रे, चोक्खे चित्त धरो-ध्यान;
प्रगटे अनुभव-ज्ञान केवल-कला रे, साध्य-बिन्दु० सिद्ध
- स्थान...चलो०४ योग-त्रयी प्रभु चरण चडावीओ रे, अंग-पूजा अभिराम ;
समिति-गुप्ति थी प्रवृत्ति निवृत्तिए रे, अग्र-पूजा गत काम. चलो०५ कषाय थी उपयोग न जोडिए रे, भाव पूना ए खास ; प्रतिपत्ति-पूजा वीतरागता रे, सहजानंद विलास...चलो० ६
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