Book Title: Sahajanand Sudha
Author(s): Chandana Karani, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Shrimad Rajchandra Ashram

View full book text
Previous | Next

Page 271
________________ आवश्यक रहस्ये रम्ये, सधे मौनता भाष ; स्वरूप गुप्त असंग ले, ज्ञान-निधिनो ल्हाव...२०७ अपूर्ण-घट छलकाय पण, पूर्ण रहे थिर थाप ; न पड़े वाद विवाद मां, रहे स्वरूपे व्याप...२०८ आवश्यक क्रम एहथी, आप्त-जनो थया सिद्ध ; अप्रमत्त थई ने लह्या, सहजानन्दघन मृद्ध...२०६ शद्ध उपयोग:- १२ जाणे जुले निज आतमा, परमार्थे सर्वज्ञ ; व्यवहारे थी सर्वने, एम कहे मर्मज्ञ...२१० वर्ते ताप-प्रकाश जेम, सूर्य मां एक साथ ; . . वर्ते दर्शन-ज्ञान तेम, सर्वज्ञ एक साथ...२११ स्व-पर-प्रकाशक आतमा, पर प्रकाशक ज्ञान ; .. दर्शन स्व-प्रकाशक ज छे, ए अकान्त अज्ञान...२१२ पर-प्रकाशक ज्ञान जो, ठरे ज दर्शन-भिन्न ; निराधार थई जड़ बने, माटे बन्ने अभिन्न...२१३ पर-प्रकाशक आत्म जो, ठरे ज दर्शन भिन्न ; . विना दृष्टि कोने जुओ, माटे बन्ने अभिन्न...२१४ ज्ञान-जीव पर-द्योतका, तेथी दृष्टि वे'वार ; परमार्थे स्व-प्रकाशका, तेथी दृष्टि पण धार"२१५ जाणे जुए प्रभु स्वात्मने, लोकालोके न लक्ष्य ; ए दृष्टि ज परमार्थनी, जेथी स्वरूप प्रत्यक्ष "२१६ आणे लोकालोकने, सर्वज्ञ नहीं आत्म ; ए दृष्टि व्यवहार नी, कथी ज्ञान माहात्म्य...२१७ २४२ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 269 270 271 272 273 274 275 276