Book Title: Sahajanand Sudha
Author(s): Chandana Karani, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Shrimad Rajchandra Ashram

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Page 269
________________ तेनुं तेने सोंपीने, रहे जेमनो तेम ; भक्ति अनन्ये तेलहे; आत्मसिद्धि सुख क्षेम...१८६ पूर्वे जे मोक्षे गया, वर्तमानमा जाय ; जशे भविमां ते बधा, भक्ति तणे सुपसाय...१८७ मुक्त' थया-वण भक्तना, भक्ति वण ना मुक्ति ; मुक्त थई भक्ति करो, सहजानन्द सुयुक्ति. १८८ परमावश्यक- ११ चित्त-वृति उरने अवश, रहे सदा स्वाधीन ; ___ .स्वाधीनता कर्तव्य ते, छे आवश्यक पीन...१८६ तृषावत् आवश्यकता, जे वण ना जीवाय ; ___ इच्छा मात्र सिद्धिना, मुमुक्षु तृषालु सदाय..:१६० अशरीरी थावा तणो वृति-जय छे उपाय ; . अंग-उपांग नो सार ए, वदे आप्त गुरुराय १६१ बाह्य त्याग हो के नहो, पण वृत्ति-जय होय ; परम आवश्यकमय ज छे, भाव निर्मथ सोय . १६२ वृत्ति शुभ के अशुभ वश, ते परवश हेरान ; भोगी हो के योगी पण, आवश्यक अप्रमाण. . .१६३ द्रव्यो गुणो पर्यायनी, चिन्ता चिन्तित चित्त ; चिंता चिताग्नि मां वले परवश छेज खचीत...१६४ यथाजात' मुद्रा छतां छतां, परवश चारित्र-भूष्ट ; _ बाह्यातंर जल्पे भमे स्वरूप स्थिरता नष्ट...१६५ १ संयोगी भाव से असंग होना २ दिगंबर - २४० Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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