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मिथ्या भावो छोडीने, सम्यक् भावे लीन ;
प्रतिक्रमण मय तेज जे, सहजानन्द-रस-पीन.१३६ सधे मुक्ति जस ध्यान थी, आत्मा उत्तम पदार्थ ;
माटे आतम ध्यान छे, प्रतिक्रमण' उत्तमार्थ. १३७ पंच पूज्यमां पूज्य नुं, ध्यान जो शिव-गेह ;
माटे सकल- अतिचार नुं, प्रतिक्रमण पण एह १३८ प्रतिक्रमण सूत्रे कहयुं, ते भावे जे भाव;
प्रतिक्रमण रहस्ये रमे, सहजानन्द स्वभाव १३६ शुद्ध प्रत्याख्यान :६ मन-वच - जल्पो त्यागीने, कारण प्रभु नुं ध्यान ;
त्याग अवस्था ज्ञानमां, निश्चय प्रत्याख्यान १४० केवल दर्शन - ज्ञानघन, केवल - सौख्य- निधान
केवल वेतन वीर्यमय, सोहं ज्ञानी - ध्यान. १४१ जोड़े ना परभावने, तजे स्वभाव न आप ;
जाणे जुए जे सर्व ने, सोहं ज्ञानी जाप... १४२ प्रकृति-स्थिति- प्रदेश - रस, बंध रहित जे जीव ;
सोहं सोहं ध्यावतो, स्थिरता त्यां ज सदैव १४३ सम-घर रहुँ, मुझ आलम्बन हुं ज ;
देहादि अहं मम बधुं, सौ बोसरावु छु ज... १४४
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मुझ निर्मम
मुझ दृष्टिमां हुं ज हूं, ज्ञान चारित्रे हुं ज;
१ संलेखना
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संबर - योगे हुं खरे, प्रत्याख्याने हूँ ज... १४५
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