Book Title: Sahajanand Sudha
Author(s): Chandana Karani, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Shrimad Rajchandra Ashram
View full book text
________________
अन्तर जल्प विकल्प नी, जालज छे दुख खाण ; .... मन मौने ल्यो शिष्ट मिष्ट, आत्म समाधि प्रमाण...८५ अव्रती व्रत मां रमे, व्रती ज्ञान ने ध्यान ;
... यथाख्यात चारित्र मां, वीतराग भगवान..८६ बाह्य-लिंग थी मोक्ष जो!, तो नटर्नु पण थाय । ..... भाव-लिंग थी मोक्ष छे, तज. वेषाग्रह लाय...८७ जाति-वेद-वय देहना, देहागह ज संसार ; ....
देहागह थी केम लहे, देहातीत स्व सार ८८ देव-शास्त्र-गुरु-आग्रही, छोड़े जो ना राग;
असंग आत्म अभ्यास वण, केम थाय वीतराग ...CE हमणा केवल मोक्ष ना, बके हीन पुरुषार्थ ;
त्यागी थई ढीला पड़े, चूके के परमार्थ...६० पंगु अंध खंधे चढ्यो, दुरे जोतां एक ; ... पण छे बे जण तेम कर, आत्म शरीर विवेक • ६१ पंगु समज अंध चालवत् , ज्ञान क्रियाए मोक्ष ...स्वानुभूति आदर करो, तजो शुष्क जड़ दोष. १२ अज्ञ ऊंघोन्मादवत्, सर्व अवस्था भान्त;
ऊंघोन्मादे भान्ति ना, आत्मदर्शी जन शान्त...६३ सर्व शास्त्र कण्ठे छतां, जाग्रत मूढ बन्धाय ; ... ..... उन्मत्त थई सूता छतां, ज्ञानी बन्ध नशाय ६४ बुद्धि ज्या ज्या हित जुओ, त्या त्यां ते तल्लीन ; - रूचि अनुयायी वीर्य पण, ज्यां श्रद्धा त्यां पीन...६५ २२०
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org
![](https://s3.us-east-2.wasabisys.com/jainqq-hq/1ca2e3185093d1418d1bc5604553a5730f7418a369615ba070d01ae1df4ba4e1.jpg)
Page Navigation
1 ... 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276