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ध्यान ध्येय के धारणा, मंत्र तंत्र नहिं जास;
मंडल मुद्रादिक नहीं, ते प्रभु ध्यावो तास : २२ वेद शास्त्र के इन्द्रिये, जाण्यो जाय न बेह;
अनुभव गोचर मात्र छे, भज परमात्मा तेह...२३ सहज ज्ञान दर्शन सहज, सहज सौख्य चित् शक्ति ;
कारण प्रभु घट घट वसे, ध्यावो गुरुगम युक्ति..२४ कार्य कारण न्याये सदा, कार्य सिद्धता थाय।
कारण-प्रभु ने सेवता, कार्य प्रभु प्रगटाय.२५ सिद्ध बसे लोकान्त मां, तेवो निष्कल देव ;
देह देवले प्रगद छे, तजी भेद तु सेक २६ जेना अनुभव मात्र थी, शीघ्र कर्मलय थाय ; . ते प्रभु जो आकाश मां, तो ते केम लखाय १.०२७ इन्द्रिय सुख दुख ज्या नहीं, ज्यां नहिं मननी दोड़ ;
ते निज ज्ञायक भाव भज, अन्य झंझट सहु छोड़..२ शुद्ध नये निज मां वसे, अशुद्ध नये तन-लीन
तज अशुद्ध भज शुद्ध ने, सहनानंद रस पीन.. २६ जड़ चेतन एक थाय ना, प्रगट लक्षणे भेद ;
क्षीर नीरवत भिन्न बे, भज निज आत्म अखेद...३० मन इन्द्रियं आकार वण, जे केवल चिन्मात्र,
स्व संवेदन गम्य ते, अक्ष विषय ना छात्र ३१ भव तन भोग विरक्त थइ, खेले चिद्घन खेल ;
आत्मनिष्ठ ते संतनी, बेटे भव भूम वेल"३२
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