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सर्व दोष थी शून्य छ, सिद्धि मुक्त जिन-भूप ;
ए न्याये प्रभु शून्य ते, लख सहजात्म-स्वरूप."५५ पर ने उत्पन्न ना करे, पर थी नहिं उपजाय ; - द्रव्ये आत्मा नित्य छ, पर्याये पलटाय"५६ गुण-पर्यय युत द्रव्य ने, विश्व द्रव्य-समुदाय ;
क्रम भावि पर्याय ने, गुण सहभावि कहाय."५७ आत्म द्रव्य तेनाज छे, गुण दर्शन ज्ञानादि
पर्यय चउ-गति भाव-तन, जनित कर्म रागादि."५८ द्रव्य कर्म ने आत्म नो, छेज अनादि संयोग ; ... मिथ कर्तृत्व न उभय नो, करे न मिथ उपभोग...५६ द्रव्य कर्म ना निमित्त थी, थाय शुभाशुभ भाव ;
जड़ -निमितज सौ जड़ छे, सौ रागादि विभाव...६० विभाव निमित्ते कर्म जड़, उपजे आठ प्रकार;
२ तेथी ढक्यो मूढातमा, लहे न निज गुण सार...६१ विषय कषाये रक्त ने, चोंटे जड़-अणु-धूल ;
आत्म प्रदेशे मूढ ने, ते ज कर्म जड़-मूल...६२ तन-मन-इन्द्रिय सुख दुःखो, चउगति भृमण अमाप ;
कर्म जनित मूढात्मने, तन्मय ने संताप...६३ कर्म-फलो जड़ सुख दुःखो, नियमा मुझ थी भिन्न ;
ज्ञाता दृष्टा साक्षी हुँ, झानी रहे अखिन्न...६४ ज्ञान-निष्ठता मोक्ष छे, ज्ञेय-निष्ठता बंध; ... ज्ञेय सकल जड़ कर्म कृत, तेमा फसे ज अंध...६५
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