________________
प्राप्य विकार्य निवत्यमय, निज कर्मज- सदाय,
. गहे परिणमे उपजे, पण पर कर्म न थाय...११ नूतन अणु पण ना बने, बने न तास विकार;
. मूर्त गहण पण थाय ना, चेतनथीं निर्धार..१२ कर्ता परनो पर ज छे, निज स्वभावनो आप;
- उभय परस्पर निमित्त पण, परमो न शके व्याप...१३ व्याप्य व्यापकता सदा, तस्वरूपमा होय
कर्ता कर्मपणुज पण, तेमज तेमा जोय...१४ निज अवस्थामांज ते, व्यापे द्रव्य सदाय,
चेतन-चेतनभावमा, जड भावे जड राय...१५ कर्ता जड परिणामनो, जड ज होय त्रिकाल ;
- ज्ञान परिणतिनो, सदा, कर्ता चेतन भाल...१६ घट परिणामना ज्ञाननो, का छे कुम्भार';
घट परिणमने निमित्त छ, घट कर्ता न लगार...१७ जड़ परिणामना ज्ञाननो, कर्ता चेतन होय
___ ड परिणमने निमित्त पण, जड-कर्ता नहीं सोय...१८ व्याप्यच्यापक भाव, छे, घट-माटीमा जेम ;
... घट कुम्भारे ते नहि, जड-चेतन पण तेम...१६ उष्ण जले बाटी पचे, पण जल पाचक नोय;
पाचक धर्म छे अग्निनु, शुद्ध दृष्टिए जोय.२० जल अग्नि संयोगथी, लहे उष्णता जेह;
उष्ण धर्म ते अग्निनु, जल स्वभाव न तेह...२१
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org