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(१८२) खामणा
८-६.६७
थया अमे खमी-खमावी निःशंक, बेसी राज प्रभु अंक...थया० काल अनादि नो अनन्तानुबंधी, सिलक हतो भव-पंक; परमकृपालु शरणे जातां, आत्मा थयो निःकलंक. थया०१ शाता नो भिखारी भटक्यो, चोर्यासी मां रंक; परम कृपालु कृपा थी हवे तो, सहजानंद सटकथया० २
(१८३) नव दम्पत्ति आशीर्वाद
हम्पी १६-२-१९६६ भोग शरीर संसार यह, है अनादि भव रोग ; चिकित्सा इसकी कहूं, सहजानंद सुयोग...१ बचने को व्यभिचार से, दम्पति धर्म आचार ; करौ धर्म अंकूश से, काम अर्थ व्यवहार..२ बिना धर्म अंकूश ये, काम अर्थ ही अनर्थ ; धर्माकुश से मोक्षप्रद, येही काम अरु अर्थ...३ जन्मान्तर संस्कारवश, उदित विकार ही कर्म ; आत्म भान समता बलै, शमन करौ यही धर्म...४ देह कुटुम्ब समाज अरु, देश राष्ट्र ऋण बन्ध ; उऋण होने के लिए, करौ स्वधर्म सम्बन्ध...५ पति पत्नी यह देह है, हम सहजात्म-स्वरूप ; जैसे सिद्ध भगवान हैं, निर्विकार चिद्र प...६
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