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एकल आहार निहार वृत्तिधर, एकासन तप ठाया,
देश विदेश गुरू उगू विहारे, केइक भव्य बूझाव्या रे, जि० ७ ओगणी छासठमें लश्कर नगरे, श्रीजिनयशः सूरि राया, योगोद्वहन सह आंबील तपकर, गणिवर पद विभूषाया रे, जि०८ संघ आगह सह मुम्बापुरी में, जिनऋद्धिसूरि राया, सूरि मंत्र अनुष्ठान पुरस्सर, सूरिपदे स्थपवाया रे, जि० ६ ओगणी सताणव धवल आषाढे, सप्तमी गुरु अशाया, महोत्सव दशदिन अवनव रंगे, बढते नूर सवाया रे, जि० १० छत्रीस गुणगण सज्ज हुए गुरू, जन तन मन हर्षाया, यत्किंचित गुरूजीवनदर्शन, भद्र आनंद न माया रे, जि० ११ (१८५) मांगु क्षत पद आप कनेथी
मूंगी मागणी मार्गां अक्षत पद आप कनेथी,
आप कनेथी गुरू ! आप कनेथी, मूंगी० (आंकडी) छे अविनाशी अर्थ अक्षत नो, शुद्ध अक्षत लावु तेथी, अक्षत० १ नवतत्वो छे बीजभूत जेहना करू नंद्यावर्त्त अथी, अक्षत० २ ज्ञान दर्शन ने चारित्रमयी ते, ढगली करू त्रण जेथी, अक्षत० ३ सिद्धशिला पर ठाम छे जेहनो, अर्द्ध चंद्राकार एथी, अक्षत० ४ अक्षत पद फल लेवा मुकु छु, गहुंली उपर फल तेथी, अक्षत०५ अहवा संकेतथी शिव पद मागु, वांदीने त्रिकरणेथी, अक्षत०६ तारक बुद्धि करी करुणा गुरू, वांचो व्याख्यान आप तेथी, अक्षत० ७ मुक्ति दर्शक आप वाणी सुणी ने, व्रति बने भवि जेथी, अक्षत०८ श्री 'जिनरत्न' त्रयी प्रगटावी, भः पामे सुख एथी, अक्षत
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