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शांत दान्त समता सिंधु रे, बाह्यांतर तप धार गरुजी। जग जन ने प्रतिबोधवा रे, करता उग विहार गुरुजी ॥६॥ मधुर ध्वनि दिये देशना रे, अमृत सम गुरु वाण गुरुजी। भविजन आगल वर्णवा रे, सूधी जिनवर आण गुरुजी ||७|| एम अनेक गुणे भर्या रे, चरण करण ना भंडार गुरुजी। रत्नसूरि गुरु पद नमु रे, मुझ मन प्रेम अपार गुरुजी ॥८॥
(१९१) श्रीजिनरत्नसूरि गहूंली
(राग सिद्धाचल ना वासी तुमने क्रोडों प्रणाम) रत्नसूरि गुरुराज तुमने लाखों वंदन, तुमने लाखों वंदन । बाल ब्रह्मचारी गुरुराया, पुण्ये तुमारा में दर्शन पाया। सफल थयो अवतार, तुमने लाखों वंदन ॥ रत्न० ॥१॥ दुनिया नी माया ने लोडी, मन ने धम ध्याने जोड़ी। लीधो संजमभार तुमने लाखों वंदन ॥ रत्न० ॥२॥ कंचन सम छे काया गोरी, जीवो ने शिव-मार्गे दोरी। करो छो बहु उपकार, तुमने लाखों वंदन ॥ रत्न० ॥३॥ प्रमाण नय ने तत्व जाणों, जैनधर्म ना मर्म ने माणो। दर्शन आनंदकार, तुमने लाखों वंदन ॥ रत्न० ॥ ४॥ उपदेश शैली अपरंपार, जाणे सुणीए वारवार । संसार तारणहार, तुमने लाखों वंदन ॥ रत्न० ॥५॥ तुम मुख दर्शन करवा काजे, मुंबई शहर थी आव्या आजे । हैये हर्ष अपार, तुमने लाखों वंदन ॥रत्न० ॥६॥ आवतु चौमासु मुंबई शहेरे, अम विनंती करिये मेहरे। स्वीकारो. गुरुराज, तुमने लाखों वंदन ॥ रत्न०॥७॥ ये दोनों सं० २००० में प्रकाशित भद्र-पुष्पमाला
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