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(१८६) जिनरत्नसूरि ने वंदना . वंदना वंदना वंदना रे, जिनरत्नसूरि ने वंदना,
गुरू वंदन प्रेम आनंद ना रे, जिन० (आंकडी) छ? अठ्ठम तप अग्नि ज्वालाए, साधन कर्म निकंदना रे, जि० १ थाणा नगरीए रही चौमासु, बोधन भविजन वृदना रे, जि०२ परण्या भूपाल श्रीपाल ए नगरे, नरपति मातुल नंदना रे, जि० ३ शुद्ध भावे श्रीनवपद पूज्या, पुष्पो गृही अरविंद ना रे, जि० ४ तीर्थ तणी ए प्राचीनता नी, कोई काले थई खंडना रे, जि०५ तेह उद्धार ने कारण आपे, हाथ धरी चैत्य मंडना रे, जि०६ अद्भुत उत्तुंग रचना करावी, टाली ने केइ विटंबना रे, जि०७ विध विध कोरणीमय पट रचना,मयणा श्रीपाल तास अंबना रे, जि० एह प्रसाद छे आप गुरूवर नो, उज्वल कीर्ति अमंदना रे, जि०६ खरतर गच्छपति रिद्धिसूरि गुरू,महके गुलाब तनु स्यंदना रे, जि०१० चित्त जंप्यु दोय दर्शन थी, ग्रीष्मे ज्यु बावरी चंदना रे, जि० ५१ सुशिष्य रत्नसूरि संघ सकले, भद्र भावे करी वंदना रे, जि० १२
___(१८७) सुणो अम अर्ज जरी
(सिद्धाचल...क्रोडो प्रणाम, ए चाल) श्रीजिनरत्नसूरि ! सुणो अम अर्ज जरी ( आंकड़ी) अम भाग्ये गुरू आप पधार्या, दुष्काले जलधर अणधार्या ;
__ चातक प्यास हरी...सुणो० १ कल्पवृक्ष ज्यु मरुस्थली मां, मुम्बापुरी नी लालवाड़ी मां ;
प्रगट्या तरण तरी...सुणो० २
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