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(१६४) निज चेतावनी पद
११-२-६० जीया तू चेत सके तो चेत, शिर पर काल झपाटा देत... दुर्योधन दुःशासन बन्दे ! कीन्ही छल भर पेटः देख ! देख ! अभिमानी कौरव, दल बल मटियामेट : जीया० १ गर्वी रावण से लंपट भी, गये रसातल खेट : मान्धाता सरिखे नृसिंह केई, हारे मरघट लेट ; जीया० २ डूब मरा सुभूम से लोभी, निधि रिद्धि सैन्य समेत ; शक्री चक्री अर्ध चक्री यहां, सब की होत फजेत : जीया० ३ ता ते लोभ मान छल त्यागी, करी शुद्ध हिय खेत : सुपात्रता सत्संग योग से, सहजानंद पद लेत : जीया० ४ (१६५) सात्विक आहार-दान विधि रामकुटी आत्म-विज्ञान भवन
हृषिकेष ५-५-६० नमोस्तु ! नमोस्तु ! तिष्ठो ! तिष्ठो! - आवो पधारो गुरुराज ! रंक झोपड़ी में
प्राशुक अन्न जल काज रंक झोंपड़ी में निर्जन निर्मल इसी जंगल में, दास ने सजाया साजरंक० कुटी दिवार अंगन मृदु मृण्मय, फूस का छाया है छाज रंक० उपर छायी गारवेल अति शीतल, चटाई चंदोवा प्याज रंक० शिला चट्टानमय पाटा तखत ये, विराजो यहां शिरताज रंक०
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