________________
(१६८) नूतन वर्षाभिनन्दन-पद पीरात् २४८७ का शु० १ २१-१०-६०
(गजल) चेतन तुम्हें सदा हो, नूतन वर्षाभिनंदन... जयकार हो तुम्हारा, स्व स्वागताभिवंदन...१ मारा मारा फिरा तूं, बीता मिथ्यात्व जीवन ; पर हाथ कुछ न आया, पाया न आत्मदर्शन...२ पुण्योदये तुझे जब, मिला वीतराग स्पर्शन; तब परमगुरु प्रतापे, समझा स्व और परधन...३ स्व-अर्थ-धन तुम्हारा, चैतन्य भाव पावन ; जड़भाव धन पराया, तज कर किया विशुद्ध मन...४ परज्ञेय भिन्न केवल-चिद ज्योति पिण्ड सोहम् ; सोहं की लौ लगा कर, प्रविनष्ट क्षोभ मोहम्"५ दबी चेतना प्रगटी जब, निज क्षेत्र-वर्ष नूतन ; सहजात्म-स्वरूप निष्ठित, स्वतंत्र सहजानंदधन...६ (१६६) प्रेरणा-पद
उदरामसर-धोरा-गुफा ११-११-६० चाल-[जब तेरी डोली निकाली जायगी ] ला दिखादे अपने वहीवट की बही
लाभ-हानि हिसाब तूं बतला सही...१ दीर्घ-निद्रा काल झटपट आ रहा
पर परिणति में समय क्यों खो रहा...२
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org