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राष्ट्र कुटुंब समाज देश नी, फरजो उदये आवे; । ते ते चिन्ता चिन्तित चितडु, गृहस्थी गाड़ी चलावे.
आत्म प्रदेश कंपावे.. अवि०३ पद-रक्षा अभिमान प्रवाहे, परिगह चिन्त लोभावे नीति धर्म रक्षा छाने थी, माया क्रोध करावे;
निर्वृत्ति प्रवृत्ति समावे.. अवि०४ कषाय ए अप्रत्याख्यानी, आत्म-प्रतीत प्रभावे; सहजानन्दघन सम्यक् बलथी जीती निवृत्त थावे;
देशविरति अपनावे.."अवि०५
(१३८) प्रत्याख्यानी कषाय-स्वरूप
७-१०-५७ राग-सारंग जीतो ठग प्रत्याख्यान ने...(२) अप्रत्याख्यानी जे चारे, लोभ-क्रोध-छल-मान ने जीत्या ते निज आकृति बदली, प्रवृत्ति समय छले तने जी०१ प्रबृत्ति-निर्वृत्तिमय जागृत काले, भजो स्वरूप निशान ने, तेल-धार ज्यम करो अखंडित, तजो न अजपा जाप ने जी०२ अमूल्य अवसर व्यर्थ न खोवो, गाड़ी आवी स्टेशने; झबके मोती लेज परोवी, पड्या पछी झट उठने जी०३ आत्म-प्रतीति-लक्ष अखंडित, निद्रा-जागति मां बने; तो ते सर्वविरति धर साधु, पदवी सहजानन्दघने जी०४
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