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तेना नाश माटे ज्ञाननिष्ठाने जगावो रे ॥१॥ शुद्ध चतन्य स्वभाव स्वयंज्योति छे छतां \कर्मयोगे आतमा सकलंक देखाय जे। तेथी उपराम उपशमित थवाय जेमतेम तेम ज्ञाननिष्ठा सघन सधाय छ । माटे स्वरूपमा स्थिर अचल थवाय तेजलक्ष राखो भावो 'आत्मभावना' सदाय रे । तेवो सहज स्वभाव सिद्ध करो ! करो !! एजगुरुराज-बोध सहजानन्दनो उपाय छे ।।२।।
[श्रीमद् राजचंद्र पत्रांक ६४४-६१३ ]
(६७) प्रेरणा-पद हरिगीत-छन्द
३१-३-५४ आ जगत ने रूडु बतावा यत्न तो कीधु घणु, तेथी थयुन भलु जगतनु ना थयु पोता तणु; केमके हजी भवभूमण भवभूमण-कारण ना टल्या, रंजित-भने बंधन कर्या ते भवोभव आवी फल्या ।।१।। जो एक भव निज आत्मश्रेय सधाय तेम विताविये, तो परम्पर-नुकशान-पूर्ति आ भवेज कमाविये ; भव-बंधनेथी छटवा जे श्रेष्ठ साधन ते करो,
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