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शिव-सुख दायक निज-गुण नायक, अक्षर अक्षय ऋद्धि भरी ; सच्चिदानन्द सहज स्वरूपी; भवसागर जल तरण तरी । हूँ तो० ३ सर्व भाव शुद्ध ज्ञाता द्रष्टा, जिन-ब्रह्मा-शिव राम-हरि ; सुखणी थई हुं सखि साच कहूँ छ, नाथ चरण नुं शरण वरी । हूँ तो०४ जन्म मरण रोगोए रोगी, मुरतीआथी सृष्टि भरी; कामी केदी ने जे परणे, जाय चौरासी मां तेह मरी । हूं तो०५ माटे सेवो नाथ निरंजन, शुद्ध प्रेमरस हृदय धरी; सहजानन्द लयलीन सुमतिए, सरल मधुरी बात करी । हूँ तो०६
(१०१) छप्पय
गढ सीधाणा १-१०-४१ नाद करत है साद, जिया तूं मत सो प्यारे! मोह नींद कर त्याग, रहो पर परिणत न्यारे ; स्व स्वरूप कर याद, अहं सो सोहं भावे ; ज्ञाता द्रष्टा शुद्ध, रहो तुम आप स्वभावे ब्रह्म-रन्ध्र में ब्रह्मनाद ॐ ऐसी धून मचात है सहजानन्दघन राज ताज हर्षत शीर्ष हिलात है १ _ (१०२) उपजाति छंद
ता० १२-३-५४ शरीर नो धर्म विशीर्ण जाणी,
आराध आत्मा निज सत्व पाणी ; शरण्य छे एक स्व आत्म तत्त्व,
तेथी तजै दैहिक संग सत्व १
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