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खाय मांकडो बोकडो, पोषे मन तन अम; मरे गोसाई गोकलो शुक ज्ञानी पण तेम ३ चित्त अशांति थाय त्यां, स्वात्म वृत्ति ने भाल; वृत्ति विचार कर्या थकी, जाय विकल्प जंजाल ४
. (१२७) प्रेरणा-व भावना ज्यों बंध-स्पर्श न जल-कमल में, क्षोर-नीर न एक ज्यों जल-उष्णता असंयुक्त ज्यों, अरु नियत नोर तरंग त्योंतन, गति, कषायो, जन्म-मृत्यु संग आत्मा शेष है, पर कनक-भूषण ज्यों स्व-आत्मा चिद्-गुणे अविशेष है; १
ओस-बुंद ज्यों क्षणभर रे, यह ससार है; तज खटपट झट क. ले रे, सत्संग सार है। २ । जब हो सच्चे गुरु का सत्संग रे, _____ तब से न गमे संसारी-प्रसंग रे; परम-कृपालु-छबि हिय-दृग झलके रे, .
मन-मरकट तब कहीं नहीं भटके रे,...३ चलते फिरते प्रगट प्रभु देखरे;
मेरा जीना सफल तब लेखू रे। मैं-प्रभु में प्रभु-मुझ में समावू रे, .
सहजानन्द-समाधि रमावू रे...४
शुद्धता विचारे ध्यावे, शुद्धता में केली करे,
शुद्धता में स्थिर रहे, अमृत धारा वरसे रे। १।
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