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(६८) चैतन्य लक्षणम्
इडरगढ कंदरा वै. शु० १२/२००५ (ढाल-चेतेतो चेतावू तुंनेरे)
बलूडो अमर तारो रे चेतना माडी ! नथी जेने श्वासो-श्वास, अंधकार के प्रकाश
___स्पर्श-रूप-रस-वास रे.. चे० १ नथी जैने राग द्वेष, नाम ठाम जाति वेष,
जड़ नो धरम लेश रे.. चे०२ नथी गति के आगति, भय शोक ने अरति,
जुगुप्सा ने हास्य रति रे...चे. ३ नथी जड़ काय भोग, जनम मरण रोग,
पर संयोग वियोग रे.. चे० ४ नथी जेने तृष्णा धोध, लोभ मान माया क्रोध,
अविरति के अवोध रे...घे ५ चले जे न अभि माहि, अल मांहि गले नाहि,
. . छेदन भेदन कांइ रे. चे० । एतो छ अनंतज्ञान, चरण - दर्शनवान, .
क्षायिक नवे निधान रे...चे० ७ शुद्ध बुद्ध अविकार, शास्वत अचल चार,
अखंड स्वरूप धार रे.. चे - धन्य माड़ी! तारौ जायो, रोम रोम मां सुहायो,
___ सहजानंद सुहायो रे...चे० ६ लक्ष्मीजी नो बाबो लालजी स्वर्गवास थतां तेमने सांत्वन अर्थे बाबा ना आत्मा विषे नु ख्याल करवा नुपद ।
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