________________
(८०) अजपा प्रतीक
राग-आशा हंसा ! तुझ समरण मुझ प्यारो, तुज स्मरणे भव पारो हंसा० जाणे छे आबाल भाव थी, खीर नीर व्यवहारो० पय पात्र जल भर ने त्यागी, करे तु दुग्धाहारो। हंसा० ॥१॥ योगीजन तुझ लक्ष धरी ने, छोडी सर्व जंजालो. प्राण वाणी रस तुझ पद जपतां,करे जड़ चेतन फालो हंसा०२॥ ज्ञान ज्योति प्रगटे घट अंदर, वरसे अमृत धारो० मनमयूर हर्षे अति नाचत, अनहद जीत नगारो॥हंसा० ॥३॥ गगने आसन दिव्य सुगंधी, सिद्धि तणो नहिं पारो० तेम छतां तेमां नहिं अटके, सहजानंद सवारो हिंसा०॥४॥ [इस पद का हिन्दी रूप :
(८१) भेद-विज्ञान पद
राग-दरबारी कान्हड़ो हंसा ! तुझ स्मरण मुझे प्यारो...तुझ स्मरणे भव-पारोह जानत है आबाल काल से, क्षीर-नीर व्यवहारो; पय पात्रे तू जल को त्यागी, करत है दुग्धाहारो हं० १ योगी जन तुझ लक्षे सज्ज हो, त्यागी संसार असारो; प्राण-पाणी-रस तुझ पद जपते, करें जड़-चेतन फारोह० २ ज्ञान ज्योति प्रगटे घट में ही, वर्षे अमृत-धारो; मन मयूर हर्षे अति नाचत ; अनहद जीत-नगारोह०३ गगने आसन दिव्य सुगंधी, सिद्धियाँ को नहीं पारो; तब भी वे तामें नहीं अटके, सहजानंद अपारोहं०४
११०
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org