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(८४) चेतवणी राग-धन्याश्री
पंथिड़ा ! प्रभु भजी ले दिन चार...
तन भजतां तन जेल ठेलायो, अशरण आ संसार प० तन धन कुटुंब सजी तजी भटके, चउगति बारंबार पं० क्यां थी आव्यो ? क्यां जावु छे ? रहेशे केटली वार... पं० कत्तव्य शुं छे ? करी रह्यो शुं ? हजु न चेते लगार पं० आत्मार्पण थइ प्रभु पद भजतां, बे घडीए भवपार...पं० माटे था तैयार भजनमां, सहजानंद पथ सार" पं० ० २५-३-५४ से पूर्व । (८५) मन शिक्षा
रे मन ! मान तू मेरी बात, क्यों इत उत बही जात... (२) रहे न पत सति परघर भटकत, परहद नृप बंधात: जड़ भी कभी
तुझ धर्म न सेवें, तू जड़ता अपनात रे मन० १ काहे को भक्त ! विभक्त प्रभु सों, काहे न लाज मरात ! प्रियतम विन कहीं जात न सति-मन, तू तो भक्त मनात रे मन०२
पंच विषय - रस सेवें इन्द्रियाँ, तुझे तो लातं लात
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काहे तु इष्टानिष्ट मनावत, सुख दुख भूम भरमात रे मन० ३ सुनि के सद्गुरु सीख सुहावनी, मनन करो दिनरातः सहजानंद प्रभु-स्थिर पद खेलो, हंसो सोहं समात रे मन० ४
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