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(९०) बाबा का तूफान ओ बा ! जो ने बाबा तणु तोफान ! । मोह दूति पेलि कुजा कुमति नो, क्षणमां उडायो प्राण ।१॥ तृष्णा घर ने आग चांपी पछी, पटकी मार्यों अभिमान ।२। काम क्रोध मद लोभ पछाड़ी, मोह नो लीधो जान ।। चेतना लक्ष्मी गोद मां लूटे, सहजानन्द एक तान ।४।
(९२) तत्व रुचि पद।
मेवाड़ी भाषा में, राग-धन्याश्री माखण पिण्ड जिमाव. माई म्हाणे, माखणपिण्ड जिमाव ! छाछ बाछ म्हाणे दाय न आवे, लागो माखण चाव...१ माई० छाछे लडे हे मनख नराई, जोगी भोगी रंक राव...२ माई० तड़फड़ तड़ फे जल विना मच्छ, जल डूबो नरनाव...३ माई० प्राण पखेरू म्हारो माखण विणत्यू,उड़ सी घड़ी अधपाव...४ माई० क्यूं रोवावे देनी बाई ओ ! वेगे पडू थारे पाव...५ माई० किरपा कर जद माखण दे बाई, सहजानन्दघन दाव...६ माई०
इति चेतना माता प्रत्ये विवेक लाल नी प्रार्थना (संत भूरबाई प्रत्ये अनुलक्षी ने सरदारगढ में रचित)
(९३) स्व-पर विवेक पर द्रव्ये अकत्वता, उदये व्यापक भाव । राग द्वष. अज्ञान थी, जन्म मरण दुख दाव ॥१॥ पर कर्त्तव्य अभ्यास थी, अनादि आ संसार । निज कर्त्तव्य अभ्यास थी, टले संसरण असार ॥२॥ मच्छ वेध साधक परे; सामे पूर तराय । जाणनार जोनार मां, सुरता एम लवाय ॥३॥
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