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सूय थी मेघ विखरे-बने-आवरे,
रवि न जन्मे मरे न दुख धारे ; मुझ निमित्त थी देह उत्पत्ति लय, ।
हुं न जन्म मरूं शुदुःख म्हारे...नि० ४ मेघ थी पृथ्वी ढंकाय पण सूर्यना,
दृश्य ढंकाय कर्मे न आत्मा ; दृश्य तो झेर छे जीव व्याकुल करे,
दृश्य मां दृष्टि जोड़े न महात्मा.. नि०५ वगर समझे मर्यो हतो रहीश ज अमर,
अमर ने कोण मारे-जीवाड़े ; दुःख अज्ञान टाली अहो सद्गुरु,
सहज-आनंदघनता पमाड़े.. नि०६ [गोकाक में अधूरी रचना के अवशिष्ट पद खंडगिरि में रचे गये हैं]
जीव-कर्तृत्त्व पद
खण्डगिरि ता० १०-१०-५७
राग-कान्हड़ो कर्ता जीव स्वतन्त्र आचारी, तो तु केम रहे छे भिखारी... 'करोति-ज्ञप्ति क्रिया' उभय छे, बंध अबंध प्रकारी; बंध क्रिया थी अनरथ करतो, चेतनता धन हारी...कती० १ क्रोध लोभ मद माया चउविध, हास्य अरति रति छारी ; दुर्गछा भय शोक कामुकी, बंध-क्रिया ए तारी.. 'कर्ता०२ अनुपचार-व्यवहारे आठे, कर्म बांधे ऋण भारी; कर्ता-अभिमाने घर नगरनो, तूं कर्ता उपचारी...कर्ता०३
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