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सद्गुरु राज कृपाए निश्चल, ज्ञायक भावे म्हालशुरे अमे०२ शक्तिपणे तो स्पष्ट जाण्युं ओ, व्यक्त करी संभालशु...रे अमे० ३ श्रद्धापणे कैवल्य वर्ते छे, मुक्त विभाव जंजाल सु......रे अमे० ४ विचारधारा अनी अखंडित, बीजु तो अ+मने काम शु...रे
अमे०५ बधी इच्छाओ अमां विलीन थई, नियेच्५ मुक्तिपुरी जशु.. रे
_ अमे०६ मुख्यनये तो छीओज केवली, सहजानंद रस लसलसुं रे अमे०७
[इति छपद-पत्र-रहस्य..] (७३) सद्गुरु नी आत्म-चेष्टा
(१३-१०-५७) राग कान्हड़ो अहो ! चैतन्य-चेष्टा गुरुजन नी, ज्यां नहिं अंतजल्पना मन नी... अन्तर्जल्पना जे भाव-मन नी, आठे कर्म नी जननी ; तास निरोध अचपलता धम, निजरा ते कर्म-रज-नी.. अहो० १ मन-चंचल-कर्मे असमाधि+ज, आ म अस्वस्थता-धरणी ; शुद्ध स्वरूपे स्थिरमन स्वास्थ्ये, आत्म समाधि चित्-तरणी.. अहो०२ सव वैभाविक-भाव अनुदय, स्वाभाविकी स्थिति तननी; उदयाधीन मात्र जीवितव्य, साक्षी भावे सौ करणी.. अहो०.३ अम लखी गुरु-अंतरंग-चेष्टा, कीजे तास अनुसरणी ; सद्गुरू-भक्ति मुक्ति नी युक्ति,सहजानंद निसरणी.. अहो०४
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